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अमेरिका अपने बागवानों की पनाह में भर रहा सफलता की उड़ान

  • Writer: Seniors Adda
    Seniors Adda
  • Jun 27, 2024
  • 1 min read

अमेरिका यात्रा- संस्मरन भाग-1


संयुक्त राष्ट्र अमेरिका विकसित देशों की श्रेणी में सबसे आगे हैं। हो भी क्यों न यहां का न्यूनतम मजदूरी 8 डॉलर प्रति घंटा है। यानी एक आदमी प्रति दिन का 64 डॉलर कमा रहा है भारतीय रुपए में लगभग पांच हजार रुपए। मैँ पिछले 12 दिनों से अमेरिका में हूं।सबसे पहले वाशिंगटन डीसी में रही और इसके बाद डिट्राइट शहर में छह दिन के प्रवास के बाद अब बोयजी जा रही हूं। इन बारह दिनों में एक बात सबसे अच्छी लगी कि यहां कोई आदमी रिटायर्ड नहीं होता। मेरा मतलब शरीर भले काम करने में थोड़ा साथ छोड़ने लगे, लेकिन काम करने की लग्न मरते दम तक रहती है। सबसे पहला अनुभव होटल को लेकर है। होटल के रिस्पेशन पर सीनियर्स सीटिजन दिखे।


डिट्रोयट एयरपोर्ट पर टिकट चेक करती महिला कर्मचारी

 मैं वाशिंगटन डीसी के मैरियोट रेसिडेंसी इन में रुकी थी। यहां सफाई करने वाले से लेकर रिस्पेशन पर 40 साल के अधिक उम्र के लोग दिखे। महिला और पुरुष के बीच कोई भेदभाव और लकीर नहीं। हम भारत में रहते हैं यहां होटल, रेस्टूरेंट, ऑफिसेस में सिर्फ सुन्दर, आकर्षक और स्मार्ट युवाओं को ही देखती हूं। खासकर रिस्पेशन पर लड़कियां अधिक रहती है। यहां तक फ्लाईट की एयरहोस्टेस की बात ही मत पूछिए। एयर इंडिया को छोड़ दें तो किसी भी एयरआयंस में 40 साल से अधिक उम्र की लड़कियां नहीं दिखेंगी। यहां उलटा है हर एयरलायंस में एयरहोस्टेस 40 साल से ऊपर की ही मिली। मैँने यहां के युवाओं को मौज-मस्ती में डूबा देखा। नशे की बात अगले लेख में करूंगी। लेकिन अधिकतर युवा कॉलेज, यूनिवर्सिटी, रिसर्च, खेल और कला के क्षेत्र में हैं।  एक तरफ भारत में  पुरुष मानों 50 साल के होते ही लोग खुद को बेकार समझने लगते हैं और रिटायरमेंट के बाद घर में बैठ जाते हैं और बहू-बेटों पर निर्भर हो जाते हैं। वहीं अमेरिका में 50 साल के बुजुर्ग बड़े शौक से हर छोटा-बड़ा काम करते हैं। आज एयरपोर्ट पर एक डॉक्टर मिले। वह मिलिट्री से रिटायर्ड थे। उनकी उम्र 70 साल थी और वह अभी महिला रोग विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बताया कि वह बौजी में रहते हैं और बेटी डिट्रोइट में रहती है वहीं पर अस्पताल में काम करते हैं। बेटी से मिलने आए थे  और फिर काम पर लौट रहे हैं। उन्हें काम करना अच्छा लगता है। काम के हिसाब से अपनी जिन्दगी मौज से जीते हैं। जब तक जिन्दा हैं काम करते रहना चाहते हैं। यही नहीं एयरपोर्ट पर हमारा टिकट स्कैन करने वाली  कर्मचारी महिला की उम्र भी 50 साल से अधिक थी। लेकिन कहीं से भी वृद्धावस्था नहीं दिख रहा था। स्मार्टनेस के साथ काम करने का उत्साह बेहद ही प्रोफेशनल था। 


40 की उम्र में ही वृद्ध दिखने लगती हैं महिलाएं

हमारे यहां की महिलाएं कुपोषण की वजह से 40 साल की उम्र में ही सभी तरह के रोगों के वश में चली जाती है। वह चाहकर भी कोई काम नहीं कर पाती हैं। बहुत होता है तो घर के कामों में हाथ बंटा पाती हैं। घर के कामों को नहीं करने की वजह से हमेशा बहू से झगड़े होते रहते हैं। यह सिलसिला सदियों से चलता आ रहा है।क्योंकि महिलाओं के घर की जकड़न बहुत बड़ा बंधन है। पुरुष का भी यही हाल है। अपने ऊपर जिम्मेवारियों का बोझ इतना लेकर चलते हैं कि खुद के लिए कभी जीते ही नहीं है। दो वक्त की रोटी, बच्चों की पढ़ाई, जॉब, माता-पिता, घर-परिवार जिम्मेवारियां हजार। इसके कारण समय से पहले शरीर से अधिक मन थक जाता है। जब रिटायरमेंट मिलता है तो एक कंफर्ट जोन की तलाश में घर में बैठ जाते हैं। घर में बैठते ही हाथ-पैर काम करना और बंद कर देता है। इसका नतीजा यह होता है कि वह समय से पहले बुढ़े हो जाते हैं और वह खुद को बेकार समझने लगते हैं। भारत में एक बात अच्छी है कि अभी बच्चे कुछ हद तक माता-पिता की सेवा करना जानते हैं। सेवा का यह भाव भी अब खत्म होता जा रहा है।मैं सिर्फ पटना की बात करूंगी। यहां पर दो वृद्धाश्रम खोला जाना है। सौ की क्षमता वाले एक वृद्धाश्रम खुल चुका है। दूसरा खोलने की प्रक्रिया में है। हाल यह है कि वृद्धाश्रम से अधिक बुजुर्ग सड़क पर भीख मांगते दिख जाएंगे। क्योंकि अधिसंख्य बुजुर्ग मानसिक रूप से बीमार हो चुके हैं। बच्चों ने रखने से इनकार कर दिया तो सड़क पर दर-दर की ठोकरें खा रहे हें। ऐसे में आप देश के विकास में योगदान देने की बात कैसे सोच सकते हैं। यहां सीनियर्स सीटीजन के लिए अलग से क्वार्टर बने हैं। भारत में वृद्धाश्रम भी बुजुर्ग ठीक से नहीं रह पाते हैं। कई निजी वृद्धाश्रम खुले हुए हैं लेकिन उन्हें सुविधाएं नहीं मिलती। बीमारियों के इलाज में ही बुजुर्ग की सारी जमा पूंजी खत्म हो जाती है तो किस पर भरोसा करे। वहीं अमेरिका में बुजुर्ग कोई है ही नहीं तो कहां से गरीबी और लाचारी दिखेगी। यही कारण है कि अमेरिका अपने बागवान के साये में विकास की राह पर नित-प्रति आगे बढ़ता जा रहा है। 

 

 
 
 

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