कहने के लिए छह बच्चे, बेटा दारोगा, खुद आर्मी से सेवानिवृत्त पर देखने वाला कोई नहीं,जीवन के अंतिम पलों को वृद्धाश्रम में गुजार रहे अजब लाल
- Seniors Adda
- Oct 1, 2024
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सविता। पटना
तीन बेटा, तीन बेटी, बेटी। एक बेटा दारोगा, खुद आर्मी से सेवानिवृत्त हैं और आज वृद्धाश्रम में जिन्दगी गुजारनी पड़ रही है। बेटा-बेटी बाट जोहते-जोहते आंखें पथरा गई है। लेकिन, कोई देखने नहीं आता। जिन्दगी के आखिरी पलों को बस काट रहे हैं। यह कहानी है वैशाली के महुआ के रहने वाले 70 वर्षीय अजब लाल राय का। वह गुलजारबाग स्थित सहारा वृद्धाश्रम में पिछले चार महीने से रह रहे हैं। वह बताते हैं कि बेटा-बहू पेंशन का भी पैसा ले लेते थे लेकिन खाने को नहीं देते थे। हारकर घर छोड़ा तो कोई देखने तक नहीं आए।
आज वृद्धजन दिवस है। कहने को परिवार का रीढ़ हैं, लेकिन आज अजब लाल जैसे 96 बुजुर्ग वृद्धाश्रम में बच्चों का साथ और प्यार के तरसते दिख जाएंगे आंखों में बेटे और बेटी को देखने की आस में तीन साल से रही 80 वर्षीय उर्मिला देवी की बेटी दिल्ली में रहती है। लेकिन बेटे का कोई पता नहीं चल पा रहा है।बच्चों की याद में पगला सी गई हैं। हर वक्त बेटे और बेटियों का नाम लेकर बड़बड़ाती रहती हैं। 70 वर्षीय शांति देवी को उनका बेटा ही वृद्धाश्रम छोड़कर चला गया है। सीवान के बजरंग सिंह 100 बीघे जमीन है। एक बेटा है, लेकिन रखने वाला कोई नहीं है। शांति देवी की बेटी है, लेकिन वह कहती बेटी के घर कैसे रहेगी। वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों को देखकर किसी का भी दिल रो जाए, लेकिन इनके बच्चे देखना ही नहीं चाहते हैं। एक रिसर्च के अनुसार साल 2050 तक पूरी आबादी का 20-22 प्रतिशत जनसंख्या बुजुर्गों की होगी।
मानसिक रोगियों के साथ रहने की मजबूरी

घर में बेटा-बहू दिन-रात लड़ाई-झगड़ा करते थे। सोचा कि वृद्धाश्रम में जाकर शांति और सुकून की जिन्दगी जीएंगे, यहां आए हैं तो मानसिक रोगियों के हल्ला और हंगामा सोने ही नहीं देता है। यह कहना है गुलजारबाग वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग का। यहां रहने वाले 56 बुजुर्ग हर समय डर के साये में रहते हैं। क्योंकि मानसिक रोगी कब कहां से क्या उठाकर फेंककर मार दे, पता नहीं होता है। सहारा वृद्धाश्रम में 96 बुजुर्ग रह रहे हैं, इसमें 40 बुजुर्ग मानसिक रूप से विछिप्त है। वृद्धाश्रम में 100 बुजुर्गों के रहने-खाने से लेकर उनके पुनवार्स की व्यवस्था है। नियम के अनुसार वृद्धाश्रम में सिर्फ बुजुर्गों को रहा जा सकता है।मानसिक रोगियों के लिए अलग गृह होना चाहिए, लेकिन बुजुर्ग के नाम पर मानसिक रोगियों को वृद्धाश्रम में ही रखा जा रहा है। पिछले आठ सालों से यही स्थिति बनी हुई है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इन मानसिक रोगियों के लिए अलग से काउंसलर नहीं है। सामान्य बुजुर्गों की देखभाल करने वाले कर्मचारी ही मानसिक रूप से विछिप्त बुजुर्गों का भी देखभाल कर रहे हैं। सिर्फ स्थिति खराब होती है तो उनका इलाज एनएमसीएच या पीएमसीएच में कराया जाता है। लेकिन इन अस्पतालों में भी बुजुर्गों को इलाज के लिए लाइन में घंटों खड़ा रहना रहना पड़ता है। बुजुर्गों के कल्याण पर काम करने वाले लोगों का कहना है कि मानसिक रूप से असक्षम या बीमार हैं तो उनके लिए अलग से रहने की व्यवस्था होनी चाहिए, जहां उनके लिए सारी सुविधाओं सहित उचित मानसिक चिकित्सीय उपलब्ध होना चहिए, लेकिन बिहार में मानसिक रोगियों के लिए रहने की व्यवस्था नहीं है।इसलिए ऐसे बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में रखा जा रहा है। जिला सामाजिक सुरक्षा पदाधिकारी स्नेहा कुमारी बताती हैं कि मानसिक रोगियों को रखने के लिए पटना में कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए वृद्धाश्रम में रखा जा रहा है। वहां उनकी देखभाल की व्यवस्था होती है।
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