दलितों को भूमि का अधिकार दिलाने की लड़ाई 31 सालों से लड़ रही हैं मंजू डुंगडुंग
- Seniors Adda
- Oct 11, 2024
- 1 min read
Updated: Oct 12, 2024
भूदान आंदोलन, महिला भूमि अधिकार आंदोलन, मुहाने नदी का आंदोलन, बिहार पुनर्निमाण अभियान में मुख्य भूमिका निभाई
52 वर्षीय मंजू डुंगडुंग आहर, नहर पर जिन्दगी गुजारने वाली महिलाओं के अधिकार की लड़ाई लड़ती हैं
सविता। पटना
समाज सेवा का मतलब समाज के प्रति समर्पण होता है। इस बात का जीता जागता उदारहण हैं मंजू डुंगडुंग।पैरों में हवाई चप्पल,कंधे पर कपड़े का थैला और आंखों में दलितों और वंचितों के साथ हो रहे नाइंसाफी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के जज्बे के साथ 52 वर्षीय मंजू झुग्गी-झोपड़ी ही नहीं सुदूर गांवों में काम करती हैं। उन्हें कोई गम नहीं है कि उन्होंने अच्छी कमाई नहीं की। लेकिन लोगों की नजर में मंजू सबसे धनवान हैं। क्योंकि वह जहां भी जाती हैं गरीब-दलित महिलाओं के लिए आशा की रोशनी बन जाती हैं। यही उनकी असली कमाई है।

मंजू बताती हैं कि जब राज्य में हत्या,अपहरण जैसी घटनाएं चरम थी और राज्य का नाम बदनाम हो रहा था तब उन्होंने बिहार पुनर्निमाण यात्रा निकाली थी। दर्जनों समाजसेवी राज्य में घूम-घूमकर अमन-चैन का संदेश देते थे। उसमें मंजू डुंगडुंग का महत्वपूर्ण किरदार थावह बताती है उस समय दलितों और उच्च वर्गों के बीच बहुत फासला हो गया था, दलित डर के साये में जीते थे। उन्होंने घूमघूमकर महिलाओं में स्वरोजगार की भावना जगाई। दलितों को भूमि का अधिकार दिलाने के लिए काम किया।
उनका सबसे बड़ा काम रहा,महिलाओं को जमीन पर अधिकार दिलाने काउन्होंने आंदोलन के माध्यम से महिलाओं को जमीन पर अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी। वह बताती हैं कि वह 31 सालों से बिहार में काम कर रही हैं। लोगों का भरोसा रहता है कि मंजू जी आई हैं तो उनकी आवाज कहीं दबेगी नहीं। उन्होंने भूदान आंदोलन, मुहाने नदी को बचाने का अभियान चलाया।
खुद के पास नहीं थे कॉपी कलम के पैसे, बड़ी हुई तो गरीबों के लिए लड़ने लगी
मंजू डुंगडुंग झारखंड के सिमडेगा की रहने वाली हैनके पिता इसाहक डुंगडुंग एक समाजसेवी थे।आदिवासी समुदाय के थे। जंगल ही उनकी असली संपत्ति थी। वे जंगलें को बचाने की लड़ाई लड़ते थे। माता संतोषी डुंगडुंग गृहणी होकर जंगल की रक्षा के लिए लगी रहती थी। वह दो भाई-दो बहन थी। वह बताती हैं कि गरीबी इतनी थी कि तीसरी कक्षा में पढ़ने के लिए कॉपी-कलम तक नहीं थे। उनका बचपन अभावों के बीच बीता। जैसे-तैसे इंटर की परीक्षा पास की। पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए आगे की शिक्षा नहीं ले पाई। वह काम की तलाश में पटना आई थी। साल 1993 में भूदान आंदोलन से जुड़ गई ।

एकता मंच से जुड़कर गरीब, आदिवासी और दलितों के अधिकार के लिए काम करने लगी। उनकी शादी हेनरी मिंज से हो गई। उनके पति सीआरपीएफ के जवान थे। जिन्दगी काफी अच्छी चल रही थी।लेकिन साल 2014में पति की मौत ट्रेन दुर्घटना में हो गई.वह एक बेटी के साथ पटना में ही रही और समाज सेवा के क्षेत्र मे आगे बढ़ती चली गई।उनकी बेटी नर्सिंग कर रही है। वह बताती हैं सेवा के क्षेत्र में बहुत पैसा नहीं मिलता है। लेकिन सम्मान बहुत मिलता है। आज भी किसी महिला के साथ कोई अत्याचार होता है तो लोग मुझे याद करते हैं। रेप की प्राथमिकी दर्ज कराने से लेकर बेटियों को बाल विवाह बचाने के लिए मंजू जी काम कर रही हैं।
Comments