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चालीस की उम्र पार करने वाले लोगों के लिए दूरस्थ शिक्षा एक सशक्त माध्यम

  • Writer: Seniors Adda
    Seniors Adda
  • May 29, 2024
  • 3 min read

डॉ भीम राव अम्बेडकर ने कहा था कि शिक्षा शेरनी का दूध है जो जितना पियेगा, उतना ही अधिक दहाड़ेगा। लेकिन आज वरीय नागरिकों, महिलाओं और कामकाजी लोगों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से उच्च शिक्षा का सपना धूमिल होने लगा है। वरीय नागरिक देश के विकास का आधारस्तंभ हैं, जिन्होंने आजीवन राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना से कार्य किया। राष्ट्र का कर्त्तव्य है कि ऐसे वरीय नागरिकों की सेवा एवं रक्षा करे। खेद के साथ कहना पड़ता है कि वरीय नागरिक आज उपेक्षा के शिकार हैं। परिवार से लेकर समाज और इसके बाहर भी इनके प्रति संवेदनहीनता परिलक्षित है। वरीय नागरिकों के लिए दूरस्थ शिक्षा से कानून, वाणित्जिक प्रबंधन,चिकित्सा शिक्षा, पर्यावरण, भाषा का ज्ञान प्रदान करके उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। बचपन की बातें एवं व्यवस्था मेरे स्मरण में है। प्रत्येक विद्यालय एवं महाविद्यालय प्राइवेट से परीक्षा प्रपत्र भरकर बहुतेरे वरीय नागरिकों में महिला एवं अन्य कई सारे लोग, जो विभिन्न विभागों में कार्यरत थे, शिक्षा ग्रहण करके पदोन्नत प्राप्त करते थे या जीवन के अन्य कई सफर में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते थे। आज वो सबकुछ मिट सा गया है। हम शून्य की स्थिति में पहुंच चुके हैं। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति, महात्मा गांधी, ज्योतिबा फूले एवं डॉ भीम राव अम्बेडकर के विचारों के विपरित है। इन सभी गणमान्य लोगों ने शिक्षा के बिकेन्द्रीकरण पर जोर दिया है, जिन तथ्यों का वर्णन भारतीय संविधान में भी निहित है। आज दूरस्थ शिक्षा का केन्द्रीकरण किया जा रहा है तथा तथाकथित कुछ संस्थानों को ही इसके लिए अधिकृत किया गया है। हाल में एक खबर सामने आयी है कि सिर्फ नैक से ए ग्रेड प्राप्त विश्वविद्यालय में ही दूरस्थ शिक्षा दी जाएगी। भारत गांवों का देश है। देश के अधिकांश जनसंख्या गांवों में निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्र में वरीय नागरिकों के लिए दूरस्थ शिक्षा काफी लाभदायक एवं आसानी से सुलभ हो सकती है। भारत में शिक्षा को ग्रामीण उन्मुखी होना चाहिए। दूरस्थ शिक्षा का इतिहास भारत में अति प्राचीन और गौरवशाली है। महाभारत काल में कर्ण दूरस्थ शिक्षा प्राप्त करके ही सर्वश्रेष्ठ धनुविद्या में परागंत था। जिसका कोई जोड़ नहीं था। भारत में यह दूरस्थ शिक्षा का प्रभाव था। वीर बालक अभिमन्यु केवल पाठ्य सामग्री का श्रवण करके चक्रव्यू को भेदने में सक्षम था। अन्यथा कर्ण फॉर्मल शिक्षा से वंचित था। अंतत: अपने लेख के माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि दूरस्था शिक्षा समाज व्यवस्था एवं राष्ट्र को परिवतिर्त कर सकता है।



आज से चार साल पहले पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर भारती एस कुमार के ससूर नालंदा विश्वविद्यालय पटना के माध्यम से पीजी की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें डिग्री प्रदान करने के लिए खुद राजेन्द्र नगर स्थित उनके निवास गए थे। सरकार एवं मुख्यमंत्री द्वारा अपनायी गई यह एक अच्छी पहल थी। लेकिन हाल के वर्षों में केन्द्रीय सरकार विशेषकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अनावश्यक पाबंदियों को लगाकर दूरस्थ शिक्षा के दरवाजे को बंद कर दी है। यह किसी भी धावक के पैरों में बेड़ी लगाने जैसा कदम है। ऐसी व्यवस्था को कही से भी न्यायोचित नहीं कहा जा सकता है। शिक्षा का दरवाजा सर्वदा और सबके लिए सुलभ होना चाहिए। भारत में दूरस्थ शिक्षा वरीय नागरिकों, महिलाओं और कार्यरत व बेटियों के लिए अमृत बूंद की तरह है। जिसकी सुलभता एवं उपलब्धता सर्वत्र आसानी से होना चाहिए। विशेषकर वरीय नागरिक जिनके लिए रेगूलर मोड में शिक्षा ग्रहण करना संभव नहीं है। दूसरी तरफ नारी समाज जो घर गृहस्थी, नौकरी, बच्चों की बोझ में दबी रहती है, उनके लिए दूरस्थ शिक्षा भविष्य को सुधारने के लिए एक सशक्त माध्यम है। सरकार को दूरस्थ शिक्षा के विरूद्ध पाबंदियां नहीं लगाना चाहिए। वरीय नागरिक जिन्दगी के किसी मोड़ पर दूरस्था शिक्षा के माध्यम से अपने कॅरियर में परिवर्तन लाकर अपने आपको मनचाहे ढंग से परिवर्तित कर सकते हैं। दूरस्थ शिक्षा सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। परंतु इसके माध्यम से दक्षता एवं व्यक्तिव का पूर्ण विकास संभव नहीं है। अत: समग्रता के परिपेक्षा में एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में दूरस्थ शिक्षा व्यस्क एवं वरीय नागरिकों के लिए वरदान है। विशेषकर कोरोना काल की अवधि और पहले भी दूरस्थ शिक्षा का महत्व अधिक दिखा है। कोराेना काल ने कई क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाया, लेकिन सर्वाधिक नुकसान शिक्षा को हुआ। इसके बाद वैश्विक परिदृश्य में दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षा का महत्व अत्याधिक परिलक्षित हुआ है। नियमों, जटिलताओं एवं पाबंदियों की बेड़ियों से जकड़ी शिक्षा निरर्थक है।

प्रोफेसर जर्नादन प्रसाद] ,पूर्व विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग, मगध महिला कॉलेज

 
 
 

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