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पति से धोखा मिला, कानून की पढ़ाई कर वकील बनी, इंसाफ मिला, अब चौथे स्टेज के कैंसर को आभा चौधरी ने हराया

  • Writer: Seniors Adda
    Seniors Adda
  • Feb 20
  • 3 min read

मटुक नाथ चौधरी की पूर्व पत्नी के जिन्दादिली की कहानी, आठ साल से दर्जनों पीड़ित महिलाओं को दिला चुकी हैं इंसाफ

डॉक्टरों ने कहा था उम्र अधिक है, बचा पाना मुश्किल होगा, लेकिन आभा चौधरी ने हार नहीं मानी, नियमित दवा और परहेज से कैंसर पर विजयी हासिल की

सविता। पटना

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है। ऐसे ही जिन्दादिल इंसान का नाम है आभा चौधरी। आभा चौधरी ने 65 साल की उम्र में चौथे स्टेज के कैंसर को हराकर कभी हार नहीं मानने का संदेश दिया है। ज्यादातर लोग इन्हें लवगुरु मटुकनाथ चौधरी की पूर्व पत्नी के रूप में जानते हैं। लेकिन आभा चौधरी ने जिस तरह से मुसीबतों से लड़ी और उसपर विजयी हासिल की है, वह शायद ही कोई कर सकता है। पति से मिले धोखे के बाद वह वकील बनी और दर्जनों महिलाओं की आवाज बनी। वह बताती है कि जिन्दगी थोड़ी पटरी पर आने वाली थी। बेटे और बहू के साथ बाकी जिन्दगी गुजारने का सपना देख रही थी, अचानक पता चला कि उन्हें गर्भाश्य का कैंसर हो गया है। डॉक्टरों ने कह दिया कि उम्र अधिक है। उबर पाना मुश्किल होगा। वह खुद के अंदर की शक्ति को पहचानी और जिन्दा रहने का हौसला बनाई रखी। वह कहती हैं कि जब पति ने धोखा तो वह झेल गई। समाज ने कई तरह लांछन लगाए। वह खुद को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ी और जीती भी। यह तो शरीर की बीमारी है। इससे लड़ना है और जीतना है। इसी जुनून ने कभी बीमारी के सामने झुकने नहीं दिया और आज स्वस्थ हैं।



2006 में पति की बेवफाई का पता चला

आभा चौधरी बताती हैं कि साल 2006 में पति से बेवफाई का पता चला। सरकारी क्वार्टर में पति प्रेमिका के साथ रहते थे। इसका विरोध किया तो लड़ाई- झगड़ा सबकुछ हुआ। हारकर उन्होंने 2007 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह एक गृहिणी थी। बच्चे और पति ही पूरी दुनिया थी। कानून की बातें समझ में नहीं आती थी। उनके पति कई तरह से परेशान करने लगे। उन्होंने तय किया कि वह कानून की पढ़ाई करेंगी। साल 2010 में घरेलू हिंसा अधिनियम को समझने के लिए कानून की पढ़ाई की। खुद को इंसाफ दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिला। इसके बाद वह बैठी नहीं। कानून की पढ़ाई करने के बाद हिंसा से पीड़ित महिलाओं की लड़ाई लड़ने लगी। वह बताती है कि पिछले आठ सालों से पीड़ित महिलाओं की लड़ाई लड़ रही हैं, बीमारी की वजह से कुछ समय के लिए रुकी हैं। अब फिर से कोर्ट जाने की तैयारी कर रही हैं।पिछले साल जुलाई में तेज बुखार के बाद अस्पताल में हुई भर्तीआभा चौधरी बताती हैं कि पिछले साल जुलाई में अचानक तेज बुखार आने लगा। दवा खाते थे तो बुखार ठीक हो जाता था, लेकिन उसके बाद पेट में दर्द शुरू हो गया। डॉक्टरों ने सभी तरह की जांच की, लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा था। दो महीने तक सिर्फ जांच में बीत गया। तीसरे महीने डॉक्टरों ने कहा कि पेट का ऑपरेशन करना पड़ेगा, तभी बीमारी का पता चलेगा। डॉक्टरों ने पेट का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के बाद गर्भाश्य में कैंसर का पता चला। लगातार कीमो चढ़ने लगा। पटना से कोलकत्ता में इलाज चला। डाक्टरों ने कहा कि उम्र अधिक हो गई है। कीमो चढ़ने के बाद इनको बचा पाना मुश्किल होगा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बेटा, भाई और भतीजा ने साथ दिया। वह बताती है कि उनकी दो पोतियां हैं। उन्हें जब भी देखती है जीने की इच्छा जाग जाती है। वह डॉक्टरों द्वारा बताए गए सारे नियम को फॉलो करती गई। सबसे जरूरी है वह खाने-पीने में परहेज करती हैं। खाने में अधिक से अधिक हरी सब्जियां खाती हैं। प्रोटीनयुक्त भोजन करती हैं। तेल, मसाला नहीं खाती हैं।


 
 
 

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