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बंजर होते खेत को बचाने के लिए पांच दोस्तों ने शुरू किया मत्स्य पालन, पपीते और सहजन की खेती

  • Writer: Seniors Adda
    Seniors Adda
  • May 22, 2024
  • 2 min read

सोन नदी के बालू संग्रहण से खेत हो रहे हैं बंजर, इन खेतों में कभी गेहूं, मटर और धान की फसलें लहलहाती थी

सोन नदी का बालू सोना की तरह बिकता है। कारोबारी गर्मी में बालू को खरीदकर जमा करते हैँ और फिर बरसात के मौसम में बालू को अधिक कीमत पर बेचते हैं। लेकिन यह बालू जिस जमीन पर रखी जाती है वह बंजर हो जाती है। क्योंकि सोन का बालू मिट्टी में घूलता नहीं है। इसकी वजह से आरा में सोन नदी के किनारे संदेश प्रखंड के सैकड़ों एकड़ जमीन बंजर हो रही है।


आरा के सन्देश में बंजर जमीन पर मछली पालन और खेती करते

बंजर होते खेत को बचाने के लिए पांच दोस्तों ने मिलकर समेकित कृषि की शुरुआत की है। बायो फ्लॉक तालाब में मत्स्य पालन से लेकर फल और सब्जियों की आधुनिक खेती कर रहे हैं। खेती कर रहे मंगल सिंह बताते हैं कि वह एक व्यवसायी हैं। गांव में खेत है, लेकिन कभी

खेती नहीं की। लेकिन जब भी वे गांव आते थे, खेत खलिहान की याद आने लगती। कई दिनों से वे और उनके दोस्त मत्स्य पालन और आधुनिक तरीके से फल और सब्जियों की खेती करना चाहते थे। कई जगहों पर जमीन देख रहे थे, पर अधिकतर जगहों पर उपजाऊ जमीन मिलती और लीज का पैसा अधिक लग रहा था। इसी खोज में थे तो पता चला कि संदेश के नारायणपुर में जमीन है लेकिन वहां पर बालू संग्रहण किया जाता है। इससे कई एकड़ जमीन बंजर हो गई है। वह बताते हैं शुरू में मात्र छह एकड़ जमीन बिना बालू वाला मिला। इसी जमीन पर बायो फ्लॉक तालाब खुदवा दिए। तालाब खुदाई और पेड़-पौधे लगाते देख, किसान अपना जमीन देने के आगे आने लगे। दो महीने में 20 एकड़ जमीन लीज पर ले चुके हैं। यहां पर लीज की राशि अन्य जगहों के मुकाबले कम है। मंगल सिंह बताते हैं कि जनेश्वर सिंह, मनीष कुमार सिंह, अभय सिंह, पप्पू सिंह हम सभी दोस्त बिजनेसमैन हैं। हम सब गांव से जुड़े हैं, लेकिन खेती नहीं करते हैं। अब खेती से बंजर होती जमीन को बचाने की मुहिम में जुट गए हैं। इसके साथ पशुपालन और बागवानी भी करने जा रहे हैं। पपीता और सहजन की खेती शुरू किए हैं।

हम अपनी जमीन को खेती-बारी करने के लिए दस साल के लीज पर 10 हजार रुपए प्रति वर्ष के हिसाब से दे रहे हैं।

हम अपनी जमीन को खेती-बारी करने के लिए दस साल के लीज पर 10 हजार रुपए प्रति वर्ष के हिसाब से दे रहे हैं। दो जून को लीज पर अपना खेत देने वाले अशोक सिंह और नगीना सिंह बताते हैं कि किसान के लिए खेत मां होती है। कारोबारी बालू रखने की अधिक कीमत देते हैं। लालच में खेत दे थे। क्योंकि अब खेती करने वाला कोई बचा नहीं है। । लेकिन पांचों मित्र मिलकर खेती की बात सुनी तो खुशी हुई। अपने खेतों को बचाने के लिए हम लीज देने के लिए आए हैं। जहां पहले धान, गेहूं, मटर की खेती होती थी आज विरानी है।

 
 
 

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