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मुसलमानों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की लड़ाई लड़ रहे 71 वर्षीय जाहिद अंसारी

  • Writer: Seniors Adda
    Seniors Adda
  • Oct 12, 2024
  • 2 min read

Updated: Oct 14, 2024

गंगा में मछली मारने की आजादी दिलाने वाले जाहिद अंसारी ने गंगा मुक्ति आंदोलन किया

सुल्तानगंज से पीरपैंती तक  80 किलोमीटर में पानीदारी कानून लगाकर कर मछुआरों से टैक्स वसूलते थे।


सविता। पटना

मुसलमानों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए समाज की मुख्यधारा में आना ही पड़ेगा, बिना मुख्यधारा में आए, हमारा समाज विकसित नहीं हो सकता है। इसके लिए मैं पिछले 42सालों से काम कर रहा हूं। यह कहना है जेपी आंदोलनकारी और गंगा में पानीदारी को खत्म करने की लड़ाई लड़ने वाले 71 वर्षीय जाहिद अंसारी का।


बिहारशरीफ के चूड़ी चक के रहने वाले जाहिद जी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पटना से की है। इसके बाद भागलपुर नानीघर चले गए। वहीं से जेपी के छात्र आंदोलन संघर्ष वाहिनी से जुड़े। गंगा मुक्ति आंदोलन के भी हिस्सा रहे। मुस्लिम समाज को राजनीति में पहचान दिलाने के लिए कई आंदोलन किए, लेकिन आज वह गुमनामी जिन्दगी जीते हैं। क्योंकि उनका समाज बदलने को तैयार नहीं है। वह कहते हैं कि केन्द्र सरकार एनआरसी लाई है। लेकिन इसके भुगतभोगी सिर्फ मुस्लिम नहीं बल्कि हिन्दू समाज भी है। हम मुसलमानों को एकता के साथ उसकी समस्या बनाकर इसकी लड़ाई लड़नी होगी।


मछुआरों को गंगा में मछली मारने पर देना पड़ता था पट्टा

जमींदारी के बाद पानीदारी के लिए गंगा मुक्ति के आंदोलन का हिस्सा रहे जाहिद बताते हैं कि 1952 में देश से जमींदारी प्रथा खत्म हो गई थी। लेकिन बिहार में पानीदारी लागू थी। क्योंकि जमींदारों ने पानी को जमींदारी से अलग बताकर और हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट से केस भी जीत गए। यह पानीदारी मछुआरों से उनका हक छीन रही थी। क्योंकि मछुआरों को गंगा में मछली मारने के लिए पट्टा देना पड़ता था। सुल्तानगंज से पीरपैंती तक 80 किलोमीटर में पानीदारी कानून लागू कर मछुआरों से टैक्स वसूलते थे। मछुआरों को जाल के अनुसार पट्टा देना पड़ता था। जिस साल मछली नहीं आती थी, नाव चलाना मुश्किल हो जाता था। दूसरी परेशानी थी कि मछुआरे मछली मारते थे तो अपराधी मछलियां छीन लेते थे। मछुआरन महिलाओं का शोषण भी करते थे। इसके खिलाफ 22 फरवरी 1982 को सबौर में बैठक की। मछुआरों को एकत्र किया। गंगा में फरक्का बांध की वजह से मछलियां कम हो रही थी। इसके खिलाफ भी आंदोलन किया। लेकिन सोचा कि कृषि के बाद अगर कोई क्षेत्र रोजगार दे सकता है तो वह कपड़ा उद्योग है। वे और उनके साथी बुनकरों को सशक्त करने के प्रयास में लग गए, लेकिन इसके पहले मैंने चमड़ा के जुते-चप्पल बनाने वाले को इकट्ठा किया, लेकिन इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं कम थी, इसलिए कपड़ा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। बुनकर कपड़ा का काम छोड़ रहे थे। करघे बंद थे। सबको चालू कराया। कुछ बुनकर माओवादी बन गए थे, उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा। साल 1992 में पटना में बुनकरों का बहुत बड़ा सम्मेलन किया। इसमें जार्ज फर्नांडिस को बुलाया था, लेकिन उन्होंने जया जेटली को भेज दिया। यह लड़ाई आज भी जारी है। वे बताते हैं कि पानीदारी के लिए लड़ी लड़ाई भी वे लोग जीते। साल 1991 में लालू सरकार ने पानीदारी और ताड़ के पेड़ों लगे टैक्स को खत्म कर दिया।

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