रिटायरमेंट के बाद मदन सिंह ने खेती में ढूंढ़ा स्वस्थ रहने का तरीका, जैविक खेती से हर दिन उपजा रहे 200 किलो शिमला मिर्च
- Seniors Adda
- Jun 8, 2024
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मदन सिंह बोले पुलिस में रहकर लोगों की सेवा की अब खेती कर सालों भर देते हैं लोगों को रोजगार
मशरूम, मिर्च, कद्दू, बैंगन, शिमला मिर्च, पपीता, केला सहित शेडनेट में करते हैं धनिया और खीरे की खेती
रिटायरमेंट के बाद यह महसूस हुआ कि हम अब तक सिर्फ दूसरों के लिए कमाते रहे। अपनी खुशी कहीं खो ही गई थी। खुश रहने के लिए स्वास्थ्य का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेती से अच्छा विकल्प कुछ हो ही नहीं सकता है। इस सोच ने पटना के संपतचक के डीएसपी से रिटायर्ड मदन सिंह को खेती के लिए प्रेरित किया। वह अभी 63 साल के हैं। इस उम्र में पूरी तरह स्वस्थ ही नहीं है बल्कि बुजुर्गों को स्वस्थ रहकर समाज के लिए उत्तरदायी बने को प्रेरित कर रहे हैं।

वे बताते हैं कि उन्हें बागवानी का शौक पहले से था। घर की छत पर ही 2019 से गमलों में सब्जियां उगाते थे। धीरे-धीरे छत पर 500 गमलों में सब्जी, फल और फूल उगाने लगे। गमलों में सब्जियों की खेती करने के लिए खाद के रूप में सब्जियों के छिलके और गोबर डालते थे। उनका मानना है कि इससे अच्छा जैविक उत्पाद कहां मिलता। घर में सब्जियां उगाने में आनंद आता था। इस बीच कोरोना काल आ गया। कोरोना काल में देखा कि लोग गांव की ओर फिर से लौट रहे हैं। उन्होंने सोचा कि जब गांव में ही जिन्दगी है तो वह रिटायरमेंट के बाद खेती को ही टाइमपास का माध्यम क्यों न बना ले। रिटायरमेंट के बाद गांव में छह बीघे जमीन पर जैविक तरीके से धान, गेहूं और सरसो की खेती शुरू की।
जिस दिन रिटायर हुए, उसके दूसरे दिन से खेती का प्रशिक्षण लेने लगा
पुलिस से किसान बने मदन सिंह बताते हैं कि वह 31 अगस्त 2021 को रिटायर हुए। रिटायरमेंट के दूसरे दिन से प्रशिक्षण लेने कृषि विभाग चला गया। लगातार तीन महीने तक मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद मधुमक्खी पालन का भी प्रशिक्षण ले लिया। प्रशिक्षण लेकर लौटे तो गांव की जमीन पर खेती करने लगे। खेती में नित नए प्रयोग करने से कुछ गलतियां हुई तो कुछ सीख भी मिली। लेकिन एक संतुष्टि थी कि कोई डांटने वाला नहीं था। सबसे बड़ा फायदा यह था कि सुबह-शाम खेत में टहल लेते थे, इससे स्वास्थय भी सुधरने लगा।
सितम्बर शुरू होते ही मशरूम की खेती शुरू कर देते हैं। अक्टूबर पार करते ही मशरूम का उत्पादन शुरू हो जाता है। फिर शिमला, मिर्च, मिर्च, अमरूद, पपीता, केला, नींबू के साथ सभी तरह की सब्जियों की खेती करते हैं। सब्जियों का उत्पादन कर महीने का लाखों रुपए सिर्फ कमा नहीं रहा हूं। दूसरों को लाभांवित कर रहा हूं। एक खुशी की बात यह है कि मैं आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ और रसायनमुक्त खाना देने की कोशिश में लगा हूं।

सबकुछ घर का होता है, बाहर से कुछ नहीं खरीदता
वह बताते हैं कि उन्हें बाहर यानी दुकान से कुछ नहीं खरीदना पड़ता है। सारी सब्जियां, चावल, दाल, तेल और कुछ फल भी खेत से मिल जाते हैं। उनका कहना है कि कृषि विभाग की सहायता से शेडनेट लगाए हैं।
इसमें किसी भी मौसम में सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि सब्जियों को सही मात्रा में धूप, हवा और पानी मिल पाता है। इससे सब्जियों की गुणवत्ता बरकरार रहती है। जैविक रहने के कारण बाजार में अच्छी कीमत भी मिल जाती है।
दस लोगों को दे रहे हैं रोजगार
मदन सिंह बताते हैँ कि पुलिस सेवा में रहकर लोगों की सेवा करने का मौका मिलता था, लेकिन जब खेती में आया, यहां लोगों को रोजगार देने का सौभाग्य मिल रहा है। मेरे खेत से हर दूसरे दिन200 किलो शिमला मिर्च उत्पादित होता है। सभी सब्जियां लोकल बाजार में ही बिक जाती हैं। सब्जियों को तोड़ने, पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए महिलाओं और पुरुषों को काम मिल जाता है।
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